1962 भारत-चीन युद्ध: 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण, परिणाम और इतिहास।|1962 Indo-China War in Hindi
1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण, परिणाम और इतिहास। भारत और चीन के बीच 20 अक्टूबर 1962 को शुरू हुए युद्ध में लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर चीन ने अक्साई चिन में कब्जा कर लिया और हजारों सैनिकों की मौत हुई। यह युद्ध भारत के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने उसकी राजनीतिक, सामाजिक और सैन्य वास्तविकता को प्रभावित किया। इस युद्ध के कई कारण थे, जिनमें से कुछ इतिहासकारों का मत है कि उनमें से एक था चीन के विस्तारवाद की इच्छा।
1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण, परिणाम और इतिहास।, भारत-चीन युद्ध का इतिहास, | History of 1962 Indo-China War in Hindi
भारत और चीन के बीच युद्ध 20 अक्टूबर 1962 को शुरू हुआ, जिसके परिणामस्वरूप हजारों सैनिक शहीद हुए और भारत को हार कासामना करना पड़ा। इस युद्ध में चीन ने भारत के अक्साई चिन में लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
भारत पर आक्रमण कर चीन ने भारतीय राजनीतिक नेताओं का भ्रम तोड़ दिया कि चीन भारत पर कभी आक्रमण नहीं करेगा। 1962 युद्धके बाद भारत ने चीन के प्रति अपनी नीति बदली। इस युद्ध के कई कारण थे जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे।
1962 भारत-चीन युद्ध
के बीच लड़ा गया
भारत और चीन
युद्ध प्रारंभ 20 अक्टूबर 1962
युद्ध समाप्त 21 नवम्बर 1962
युद्ध की अवधि
1 महीना 1 दिन
स्थान अक्साई चिन,
युद्ध की अवधि
1 महीना 1 दिन
स्थान अक्साई चिन,
नॉर्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी
(अब अरुणाचल प्रदेश)
और असम
सैन्य ताकत
🇮🇳 22,000 सैनिक &
🇨🇳 80,000 सैनि
1962 Indo-China War in Hindi
1962 में भारत-चीन युद्ध ने दोनों देशों के बीच संबंधों को अधिक खराब कर दिया। इस युद्ध का मुख्य कारण था चीन के द्वारा भारत के अक्साई चिन में कब्जा करना। इस युद्ध के दौरान, चीन की सेना ने भारतीय सेना को दी गई मुख्य ध्वस्त किया और भारतीयों की हजारों जानें गईं। यह युद्ध दोनों देशों के संबंधों पर लंबे समय तक असर डाला और इसकी स्मृति आज भी दोनों देशों के बीच विवादों को भरती है।
1962 Indo-China War in Hindi
भारत भारतीय स्रोत
1,383 मारे गए
1,696 लापता
548–1,047 घायल
3,968 युद्धबंदी
चीन चीनी स्रोत
722 मारे गए
1,697 घाय
1962 के भारत-चीन युद्ध के समय भारत और चीन दोनों देशों के कुछ महत्वपूर्ण नेता थे। भारतीय नेताओं में जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे, जो इस युद्ध में मुख्य नेता थे। इसके अलावा, भारत के रक्षा मंत्री वी के कृष्ण मेनन, सैन्य नेता जी०एम० बी०एस० यादव, जी०एस० व्ही० प्राहलाद, जी०एस० बचित्र सिंह आदि महत्वपूर्ण नेता थे।
चीनी नेताओं में चीन के अध्यक्ष माओ ज़ेडोंग, रक्षा मंत्री ली देंग-ह्वाई, चीनी सेना के सीएफ वंग और जियांग जिशी कुछ महत्वपूर्ण नेता थे जिन्होंने इस युद्ध के दौरान चीनी सेना का कमाल दिखाया था।
चीन
भारत
माओ ज़ेडॉन्ग
(चीनी कम्युनिस्ट
पार्टी के अध्यक्ष)
सर्वपल्ली
राधाकृष्णन
(भारत के राष्ट्रपति)
लियू शाओकि
(चीन के राष्ट्रपति)
जवाहर लाल नेहरू
(भारत के प्रधान मंत्री)
झोउ एनलाई
(चीन के प्रीमियर)
वी के कृष्णा मेनन
(भारत के रक्षा मंत्री
1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में अनेक तंगदिल तथ्यों ने बढ़ती तनाव की आग बढ़ाई थी। भारत ने 1947 में आजाद होने के बाद से अपनी अभिव्यक्ति को तैयार करते हुए न्यू दिल्ली के संविधान बनाया था जबकि चीन ने माओ जी द्वारा संचालित एक इडिओलॉजी आधारित शासन व्यवस्था की स्थापना की थी। दोनों देशों के बीच भूमि के मामले पर विवाद हो रहे थे और चीन ने उत्तर प्रदेश और असम में आक्रमण शुरू कर दिया था जिससे भारत को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा।
भारत और चीन के बीच की सीमा ब्रिटिश और चीनी साम्राज्य के समय से ही विवादित और अनिश्चित थी।
भारत चीन के बीच युद्ध का मुख्य कारण अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों की संप्रभुता को लेकर विवाद था।अक्साई चिन, जिसे भारत लद्दाख का हिस्सा मानता था और चीन शिनजियांग प्रांत का हिस्सा मानता था, यहीं से टकराव शुरू हुआ औरयह युद्ध में बदल गया।
भारत की आजादी के बाद से भारत सरकार की नीतियों में से एक चीन के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना था। भारत चीन केजनवादी गणराज्य को एक देश के रूप में मान्यता देने वाला पहला देश था।
1950 में चीन ने ऐतिहासिक अधिकारों का हवाला देते हुए तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इसके बाद भारत ने विरोध पत्र भेजकर तिब्बतमुद्दे पर बातचीत का प्रस्ताव रखा। हालाँकि, 1954 में, भारत ने चीन के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें भारत नेतिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता दे दी। यह वह समय था जब भारत के पूर्व प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने “हिंदी-चीनीभाई-भाई” नारा दिया था।
1954 में, चीन ने भारत अक्साई चिन के माध्यम से झिंजियांग को तिब्बत से जोड़ने वाली एक सड़क का निर्माण किया, इस बारे मेंभारत को 1959 में पता चला जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया।
सितंबर 1958 – भारत ने नेफा (आज का अरुणाचल प्रदेश) और लद्दाख के कुछ हिस्सों को चीन के रूप में दिखाने वाले चीन केआधिकारिक मानचित्र का विरोध किया।
1958 में तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह हुआ, जिसे चीनी सेना ने बेरहमी से दबा दिया, जिसके बाद 1959 में दलाई लामा अपनेअनुयायियों के साथ भारत आए।
जनवरी 1959 में, झोउ एनलाइस (चीन के प्रीमियर) ने पहली बार लद्दाख और नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) दोनों में 40,000 वर्ग मीलभारतीय क्षेत्र पर चीन के दावे की घोषणा की।
1960 में, झोउ एनलाई ने भारत का दौरा किया और झोउ एनलाई ने अनौपचारिक रूप से सुझाव दिया कि भारत नेफा (अब अरुणांचलप्रदेश) पर चीन के दावों को वापस लेने के बदले में अक्साई चिन पर अपने दावे छोड़ दें, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने यह प्रस्ताव पूरीतरह से ठुकरा दिया।
1962 भारत-चीन युद्ध के कई कारण थे। इस युद्ध की एक मुख्य वजह थी चीन द्वारा भारतीय राजनीतिक नेताओं के बयानों को भ्रम देना। उन्होंने भारत को धोखा देकर अपने आक्रमण का प्रयोजन छिपाया।
इस युद्ध के अन्य कारणों में सीमा विवाद, विवादित क्षेत्रों का आधिकार, विवादित क्षेत्रों में सैन्य बल की विस्तारण और चीन द्वारा आक्रमण की तैयारी थी। भारत की जंगी शक्ति की धारा चीनी सेना को चुनौती देने लगी थी और इस बीच चीन ने इस युद्ध के बाद भारत के प्रति उनकी नीति में बदलाव लाया।
इस युद्ध का मुख्य कारण था चीन के तरफ से भारत की सीमा का उल्लंघन करना, जो भारत के राष्ट्रीय भावनाओं को भांग करता था। इसके अलावा, इस युद्ध के कई गहने कारण थे जिनमें सीमा विवाद और चीन द्वारा आक्रमण की तैयारी सबसे महत्वपूर्ण थे।
भारत-चीन युद्ध: 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण, परिणाम और इतिहास।|1962 Indo-China War in Hindi
सीमा विवाद – भारत और चीन के बीच युद्ध का मुख्य कारण अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन पर सीमा विवाद था।
भारतीय क्षेत्र में सड़क निर्माण – 1954 में चीन ने शिनजियांग और तिब्बत को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए भारत के अक्साईचिन से एक सड़क का निर्माण किया। 1959 अक्साई चिन में सड़क निर्माण की खबर मिलने के बाद भारत ने इसका विरोधकिया, जिससे सीमा पर तनाव और बढ़ गया।
दलाई लामा – 1959 में दलाई लामा भारत आए और जवाहरलाल नेहरू ने उनका स्वागत किया, चीन को यह पसंद नहीं आया।दूसरा, चीन को लगता था कि तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह के पीछे भारत का हाथ है।
फॉरवर्ड पॉलिसी – 1960 में, इंटेलिजेंस ब्यूरो की सिफारिशों पर, भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने फैसला किया किफारवर्ड पालिसी के तहत भारतीय सेना को मैकमोहन रेखा के साथ और अक्साई चिन में सीमावर्ती क्षेत्रों पर कब्जा करनाचाहिए। कई रक्षा सलाहकारों का मानना है कि चीन भारत की फारवर्ड पालिसी को रोकना चाहता था।
हिंसक झड़पें – 1959-61 के दौरान, सीमा पर गश्त करने वालों के बीच लगातार झड़पें हुईं, कई बार भारतीय चौकियों परहमले हुए जिनमें कई भारतीय सैनिक शहीद हुए, अब ऐसा लग रहा था कि युद्ध एक न एक दिन तय है।
आपत्तिजनक नक्शा – सितंबर 1958 में एक चीनी सरकारी पत्रिका ने आपत्तिजनक नक्शा प्रकाशित किया, जिसमे उन्होंने नेफा(आज का अरुणाचल प्रदेश) और लद्दाख के कुछ हिस्सों को चीन का दिखाया, जिसका भारत ने पुरजोर विरोध हुआ।
इसके बाद 3 हफ्ते तक कोई खास लड़ाई नहीं हुई और बातचीत शुरू हो गई। चीन ने भारत के सामने अपनी सेना को 20-20 किलोमीटर पीछे ले जाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन भारत सरकार ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चीन पहले ही 60 किलोमीटर अंदर आ चुका है, अब हम इसके भी 20 किलोमीटर पीछे जाए।
चीन के प्रस्ताव को न मानने पर 14 नवंबर को युद्ध फिर से शुरू हुआ, जिसके बाद 21 नवंबर 1962 को चीन ने एकतरफा युद्धविराम कीघोषणा कर दी।
युद्ध विराम के बाद चीनी सेना नेफा (अरुणाचल प्रदेश) से हट गई। लेकिन चीनी सेना अक्साई चिन से पीछे नहीं हटी।
इस युद्ध में सिर्फ थल सेना का इस्तेमाल किया गया था, भारत ने वायु सेना और नौसेना का उपयोग नहीं किया, इस डर से कि चीन भीइसका इस्तेमाल करेगा।
चीन ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा क्यों की?चीन के उद्देश्य पूरे हो चुके थे-
a- क्षेत्रीय विवादों के लिए शक्ति का प्रदर्शन।
b- भारतीय फॉरवर्ड पॉलिसी को रोकना।
यूएसए, यूके और यूएसएसआर ने भारत का समर्थन किया था।
चीन को डर था कि कहीं अमेरिका युद्ध में न कूद जाए।
युद्ध का परिणाम स्पष्ट था, चीन की जीत हुई, भारत को हार का सामना करना पड़ा। चीन ने भारत के अक्साई चिन में लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
इस युद्ध में 1386 भारतीय सैनिक मारे गए, 1700 सैनिक लापता हो गए और 3000-4000 सैनिक बंदी बना लिए गए जिन्हें बाद मेंरिहा कर दिया गया। चीनी सूत्रों के अनुसार युद्ध में 722 चीनी सैनिक मारे गए थे और 1,697 घायल हुए थे। अब यह आप पर निर्भर हैकि आप चीनी स्रोत पर भरोसा करते हैं या नहीं।
सोवियत संघ ने भारत को उन्नत मिग युद्धक विमान बेचकर भारत का समर्थन किया।
युद्ध के दौरान, जवाहरलाल नेहरू ने 19 नवंबर 1962 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी को दो पत्र लिखे, जिसमें लड़ाकू जेट के12 स्क्वाड्रन और एक आधुनिक रडार प्रणाली की मांग की गई थी। नेहरू ने यह भी कहा कि जब तक भारतीय वायुसैनिकों को प्रशिक्षितनहीं किया जाता है, तब तक इन विमानों को अमेरिकी पायलटों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। कैनेडी प्रशासन द्वारा इन अनुरोधोंको अस्वीकार कर दिया गया था क्योंकि उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका क्यूबा मिसाइल संकट में उलझा हुआ था।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने फिर भी भारतीय सेनाओं को गैर-लड़ाकू समर्थन प्रदान किया और हवाई युद्ध की स्थिति में भारत का समर्थनकरने के लिए विमानवाहक पोत यूएसएस किट्टी हॉक को बंगाल की खाड़ी में भेजने की योजना बनाई।
वायु सेना की मदद न लेना – कई रक्षा सलाहकारों का मानना है कि अगर भारत ने युद्ध में वायु सेना का इस्तेमाल किया होता, तोशायद भारत को हार का सामना नहीं करना पड़ता क्योंकि कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि उस समय चीन की वायु सेना युद्ध के लिएतैयार नहीं थी।
सरकार की लापरवाही – जवाहरलाल नेहरू को यह भ्रम था कि चीन भारत पर कभी हमला नहीं करेगा, नेहरू को लगा किबातचीत से सीमा विवाद सुलझाया जा सकता है, इसलिए वे चीन की हरकतों को नजरअंदाज करते रहे और भारत ने युद्ध कीतैयारी भी नहीं की थी। कई लोग जवाहरलाल नेहरू को युद्ध में हार कारण बताते है।
भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं था – युद्ध हारना एक यह भी बड़ा कारण था कि भारत ने युद्ध की तैयारी नहीं की थी, भारत के पासपर्याप्त सैन्य हार्डवेयर नहीं था, दूसरी ओर चीन ने युद्ध के लिए पहले से ही तैयारी कर ली थी, उनके पास बड़ी मात्रा में सैन्यहार्डवेयर था, इसलिए उन्होंने केवल चार दिनों में अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा कर लिया था।
खुफिया एजेंसियों की नाकामी – किसी भी युद्ध मे खुफिया एजेंसी का बहुत बड़ा योगदान होता है इसीलिए चीन के साथ युद्ध मेभारत की हार का भारतीय खुफिया एजेंसी की नाकामी भी बड़ा कारण थी।
यह युद्ध चीन के ज्यादातर शहरों से दूर और अर्थव्यवस्था के पहलू पर ध्यान केंद्रित था, इसलिए उन्होंने इसमें ज्यादा से ज्यादा संख्या में अपने नागरिकों को हानि नहीं पहुंचाने की कोशिश की थी। चीन ने भारत के बारे में कुछ आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन भारत के अनुसार इस युद्ध में कुल 1,383 सैनिकों की मौत हुई थी।
1962 का भारत-चीन युद्ध 20 अक्टूबर, 1962 को शुरू हुआ था। इस युद्ध में चीन की अनुमति से तिब्बत से भारत के बैठे हुए एक क्षेत्र को जबरदस्ती विवश कर लिया गया था। यह युद्ध लगभग एक महीने तक चला। भारत के रक्षा मंत्री उस समय श्री वी के कृष्ण मेनन थे।
1962 के युद्ध के बाद से चीन के पास भारत का अक्षाईणी परिवर्तन है, जिसमें अभी भी तनाव है। यह अक्षाईणी कश्मीर के उत्तरी हिस्से में स्थित है और उसके बारे में चीन दावा करता है कि यह उनके अधिकार में है। इस क्षेत्र में चीन ने विस्तार किया है और वह अभी भी भारत की अपनी भूमि के रूप में दावा करता है। इस क्षेत्र की विवादित सीमा को लेकर भारत और चीन के बीच सीमा विवाद है, जो अक्षरशः सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं।
1962 में चीन ने भारत की करीब 38,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा किया था। इसमें अक्साईचिना क्षेत्र, लद्दाख के उत्तरी भाग, हिमाचल प्रदेश के जूनागढ़, धौलादार और गैरी सेक्टर शामिल थे। चीनी सेना ने भारतीय सेना को बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ा था और भारत को अपनी ज़मीन का खोना पड़ा था। यह युद्ध भारत चीन सीमा विवाद का एक बड़ा परिणाम था और इसने दोनों देशों के रिश्तों पर गहरा प्रभाव डाला।
(अब अरुणाचल प्रदेश)
और असम
सैन्य ताकत
🇮🇳 22,000 सैनिक &
🇨🇳 80,000 सैनि
1962 Indo-China War in Hindi
जनहानि और नुकसान
1962 में भारत-चीन युद्ध ने दोनों देशों के बीच संबंधों को अधिक खराब कर दिया। इस युद्ध का मुख्य कारण था चीन के द्वारा भारत के अक्साई चिन में कब्जा करना। इस युद्ध के दौरान, चीन की सेना ने भारतीय सेना को दी गई मुख्य ध्वस्त किया और भारतीयों की हजारों जानें गईं। यह युद्ध दोनों देशों के संबंधों पर लंबे समय तक असर डाला और इसकी स्मृति आज भी दोनों देशों के बीच विवादों को भरती है।
1962 Indo-China War in Hindi
जनहानि और नुकसान
भारत भारतीय स्रोत 1,383 मारे गए
1,696 लापता
548–1,047 घायल
3,968 युद्धबंदी
चीन चीनी स्रोत
722 मारे गए
1,697 घाय
नेता (Leaders)
1962 के भारत-चीन युद्ध के समय भारत और चीन दोनों देशों के कुछ महत्वपूर्ण नेता थे। भारतीय नेताओं में जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे, जो इस युद्ध में मुख्य नेता थे। इसके अलावा, भारत के रक्षा मंत्री वी के कृष्ण मेनन, सैन्य नेता जी०एम० बी०एस० यादव, जी०एस० व्ही० प्राहलाद, जी०एस० बचित्र सिंह आदि महत्वपूर्ण नेता थे।
चीनी नेताओं में चीन के अध्यक्ष माओ ज़ेडोंग, रक्षा मंत्री ली देंग-ह्वाई, चीनी सेना के सीएफ वंग और जियांग जिशी कुछ महत्वपूर्ण नेता थे जिन्होंने इस युद्ध के दौरान चीनी सेना का कमाल दिखाया था।
चीन
भारत
माओ ज़ेडॉन्ग
(चीनी कम्युनिस्ट
पार्टी के अध्यक्ष)
सर्वपल्ली
राधाकृष्णन
(भारत के राष्ट्रपति)
लियू शाओकि
(चीन के राष्ट्रपति)
जवाहर लाल नेहरू
(भारत के प्रधान मंत्री)
झोउ एनलाई
(चीन के प्रीमियर)
वी के कृष्णा मेनन
(भारत के रक्षा मंत्री
1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि (Background of the Indo-China War of 1962)
1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि में अनेक तंगदिल तथ्यों ने बढ़ती तनाव की आग बढ़ाई थी। भारत ने 1947 में आजाद होने के बाद से अपनी अभिव्यक्ति को तैयार करते हुए न्यू दिल्ली के संविधान बनाया था जबकि चीन ने माओ जी द्वारा संचालित एक इडिओलॉजी आधारित शासन व्यवस्था की स्थापना की थी। दोनों देशों के बीच भूमि के मामले पर विवाद हो रहे थे और चीन ने उत्तर प्रदेश और असम में आक्रमण शुरू कर दिया था जिससे भारत को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा।
सीमा विवाद
भारत और चीन के बीच की सीमा ब्रिटिश और चीनी साम्राज्य के समय से ही विवादित और अनिश्चित थी।
भारत चीन के बीच युद्ध का मुख्य कारण अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों की संप्रभुता को लेकर विवाद था।अक्साई चिन, जिसे भारत लद्दाख का हिस्सा मानता था और चीन शिनजियांग प्रांत का हिस्सा मानता था, यहीं से टकराव शुरू हुआ औरयह युद्ध में बदल गया।
भारत की आजादी के बाद से भारत सरकार की नीतियों में से एक चीन के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखना था। भारत चीन केजनवादी गणराज्य को एक देश के रूप में मान्यता देने वाला पहला देश था।
1950 में चीन ने ऐतिहासिक अधिकारों का हवाला देते हुए तिब्बत पर कब्जा कर लिया। इसके बाद भारत ने विरोध पत्र भेजकर तिब्बतमुद्दे पर बातचीत का प्रस्ताव रखा। हालाँकि, 1954 में, भारत ने चीन के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें भारत नेतिब्बत को चीन के हिस्से के रूप में मान्यता दे दी। यह वह समय था जब भारत के पूर्व प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने “हिंदी-चीनीभाई-भाई” नारा दिया था।
1954 में, चीन ने भारत अक्साई चिन के माध्यम से झिंजियांग को तिब्बत से जोड़ने वाली एक सड़क का निर्माण किया, इस बारे मेंभारत को 1959 में पता चला जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया।
सितंबर 1958 – भारत ने नेफा (आज का अरुणाचल प्रदेश) और लद्दाख के कुछ हिस्सों को चीन के रूप में दिखाने वाले चीन केआधिकारिक मानचित्र का विरोध किया।
1958 में तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह हुआ, जिसे चीनी सेना ने बेरहमी से दबा दिया, जिसके बाद 1959 में दलाई लामा अपनेअनुयायियों के साथ भारत आए।
जनवरी 1959 में, झोउ एनलाइस (चीन के प्रीमियर) ने पहली बार लद्दाख और नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) दोनों में 40,000 वर्ग मीलभारतीय क्षेत्र पर चीन के दावे की घोषणा की।
1960 में, झोउ एनलाई ने भारत का दौरा किया और झोउ एनलाई ने अनौपचारिक रूप से सुझाव दिया कि भारत नेफा (अब अरुणांचलप्रदेश) पर चीन के दावों को वापस लेने के बदले में अक्साई चिन पर अपने दावे छोड़ दें, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने यह प्रस्ताव पूरीतरह से ठुकरा दिया।
1962 भारत-चीन युद्ध के कारण (Causes of 1962 indo-china war in Hindi)
1962 भारत-चीन युद्ध के कई कारण थे। इस युद्ध की एक मुख्य वजह थी चीन द्वारा भारतीय राजनीतिक नेताओं के बयानों को भ्रम देना। उन्होंने भारत को धोखा देकर अपने आक्रमण का प्रयोजन छिपाया।
इस युद्ध के अन्य कारणों में सीमा विवाद, विवादित क्षेत्रों का आधिकार, विवादित क्षेत्रों में सैन्य बल की विस्तारण और चीन द्वारा आक्रमण की तैयारी थी। भारत की जंगी शक्ति की धारा चीनी सेना को चुनौती देने लगी थी और इस बीच चीन ने इस युद्ध के बाद भारत के प्रति उनकी नीति में बदलाव लाया।
इस युद्ध का मुख्य कारण था चीन के तरफ से भारत की सीमा का उल्लंघन करना, जो भारत के राष्ट्रीय भावनाओं को भांग करता था। इसके अलावा, इस युद्ध के कई गहने कारण थे जिनमें सीमा विवाद और चीन द्वारा आक्रमण की तैयारी सबसे महत्वपूर्ण थे।
भारत-चीन युद्ध: 1962 के भारत-चीन युद्ध के कारण, परिणाम और इतिहास।|1962 Indo-China War in Hindi
Causes of 1962 indo-china war in Hindi
सीमा विवाद – भारत और चीन के बीच युद्ध का मुख्य कारण अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन पर सीमा विवाद था।
भारतीय क्षेत्र में सड़क निर्माण – 1954 में चीन ने शिनजियांग और तिब्बत को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए भारत के अक्साईचिन से एक सड़क का निर्माण किया। 1959 अक्साई चिन में सड़क निर्माण की खबर मिलने के बाद भारत ने इसका विरोधकिया, जिससे सीमा पर तनाव और बढ़ गया।
दलाई लामा – 1959 में दलाई लामा भारत आए और जवाहरलाल नेहरू ने उनका स्वागत किया, चीन को यह पसंद नहीं आया।दूसरा, चीन को लगता था कि तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह के पीछे भारत का हाथ है।
फॉरवर्ड पॉलिसी – 1960 में, इंटेलिजेंस ब्यूरो की सिफारिशों पर, भारत के प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू ने फैसला किया किफारवर्ड पालिसी के तहत भारतीय सेना को मैकमोहन रेखा के साथ और अक्साई चिन में सीमावर्ती क्षेत्रों पर कब्जा करनाचाहिए। कई रक्षा सलाहकारों का मानना है कि चीन भारत की फारवर्ड पालिसी को रोकना चाहता था।
हिंसक झड़पें – 1959-61 के दौरान, सीमा पर गश्त करने वालों के बीच लगातार झड़पें हुईं, कई बार भारतीय चौकियों परहमले हुए जिनमें कई भारतीय सैनिक शहीद हुए, अब ऐसा लग रहा था कि युद्ध एक न एक दिन तय है।
आपत्तिजनक नक्शा – सितंबर 1958 में एक चीनी सरकारी पत्रिका ने आपत्तिजनक नक्शा प्रकाशित किया, जिसमे उन्होंने नेफा(आज का अरुणाचल प्रदेश) और लद्दाख के कुछ हिस्सों को चीन का दिखाया, जिसका भारत ने पुरजोर विरोध हुआ।
1962 भारत-चीन युद्ध
लगातार हिंसक झड़पों के बाद, चीन ने अंततः 20 अक्टूबर 1962 को भारत पर आक्रमण किया, चीन ने केवल चार दिनों में NEFA (आज का अरुणाचल प्रदेश) और तवांग पर कब्जा कर लिया, यहां तक कि चीनी सेना तेजपुर, असम तक पहुंच गई।इसके बाद 3 हफ्ते तक कोई खास लड़ाई नहीं हुई और बातचीत शुरू हो गई। चीन ने भारत के सामने अपनी सेना को 20-20 किलोमीटर पीछे ले जाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन भारत सरकार ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि चीन पहले ही 60 किलोमीटर अंदर आ चुका है, अब हम इसके भी 20 किलोमीटर पीछे जाए।
चीन के प्रस्ताव को न मानने पर 14 नवंबर को युद्ध फिर से शुरू हुआ, जिसके बाद 21 नवंबर 1962 को चीन ने एकतरफा युद्धविराम कीघोषणा कर दी।
युद्ध विराम के बाद चीनी सेना नेफा (अरुणाचल प्रदेश) से हट गई। लेकिन चीनी सेना अक्साई चिन से पीछे नहीं हटी।
इस युद्ध में सिर्फ थल सेना का इस्तेमाल किया गया था, भारत ने वायु सेना और नौसेना का उपयोग नहीं किया, इस डर से कि चीन भीइसका इस्तेमाल करेगा।
सेना की ताकत
भारत के पास लगभग 20,000 सैनिक थे, जबकि चीन के पास 80,000 सैनिक थे।चीन ने एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा क्यों की?चीन के उद्देश्य पूरे हो चुके थे-
a- क्षेत्रीय विवादों के लिए शक्ति का प्रदर्शन।
b- भारतीय फॉरवर्ड पॉलिसी को रोकना।
यूएसए, यूके और यूएसएसआर ने भारत का समर्थन किया था।
चीन को डर था कि कहीं अमेरिका युद्ध में न कूद जाए।
1962 भारत-चीन युद्ध का परिणाम (Result of Indo-China War 1962 in Hindi)
युद्ध का परिणाम स्पष्ट था, चीन की जीत हुई, भारत को हार का सामना करना पड़ा। चीन ने भारत के अक्साई चिन में लगभग 38,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
इस युद्ध में 1386 भारतीय सैनिक मारे गए, 1700 सैनिक लापता हो गए और 3000-4000 सैनिक बंदी बना लिए गए जिन्हें बाद मेंरिहा कर दिया गया। चीनी सूत्रों के अनुसार युद्ध में 722 चीनी सैनिक मारे गए थे और 1,697 घायल हुए थे। अब यह आप पर निर्भर हैकि आप चीनी स्रोत पर भरोसा करते हैं या नहीं।
विदेशी सहायता
सोवियत संघ ने भारत को उन्नत मिग युद्धक विमान बेचकर भारत का समर्थन किया।
युद्ध के दौरान, जवाहरलाल नेहरू ने 19 नवंबर 1962 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी को दो पत्र लिखे, जिसमें लड़ाकू जेट के12 स्क्वाड्रन और एक आधुनिक रडार प्रणाली की मांग की गई थी। नेहरू ने यह भी कहा कि जब तक भारतीय वायुसैनिकों को प्रशिक्षितनहीं किया जाता है, तब तक इन विमानों को अमेरिकी पायलटों द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। कैनेडी प्रशासन द्वारा इन अनुरोधोंको अस्वीकार कर दिया गया था क्योंकि उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका क्यूबा मिसाइल संकट में उलझा हुआ था।
संयुक्त राज्य अमेरिका ने फिर भी भारतीय सेनाओं को गैर-लड़ाकू समर्थन प्रदान किया और हवाई युद्ध की स्थिति में भारत का समर्थनकरने के लिए विमानवाहक पोत यूएसएस किट्टी हॉक को बंगाल की खाड़ी में भेजने की योजना बनाई।
भारत यह युद्ध क्यों हार गया?
वायु सेना की मदद न लेना – कई रक्षा सलाहकारों का मानना है कि अगर भारत ने युद्ध में वायु सेना का इस्तेमाल किया होता, तोशायद भारत को हार का सामना नहीं करना पड़ता क्योंकि कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि उस समय चीन की वायु सेना युद्ध के लिएतैयार नहीं थी।
सरकार की लापरवाही – जवाहरलाल नेहरू को यह भ्रम था कि चीन भारत पर कभी हमला नहीं करेगा, नेहरू को लगा किबातचीत से सीमा विवाद सुलझाया जा सकता है, इसलिए वे चीन की हरकतों को नजरअंदाज करते रहे और भारत ने युद्ध कीतैयारी भी नहीं की थी। कई लोग जवाहरलाल नेहरू को युद्ध में हार कारण बताते है।
भारत युद्ध के लिए तैयार नहीं था – युद्ध हारना एक यह भी बड़ा कारण था कि भारत ने युद्ध की तैयारी नहीं की थी, भारत के पासपर्याप्त सैन्य हार्डवेयर नहीं था, दूसरी ओर चीन ने युद्ध के लिए पहले से ही तैयारी कर ली थी, उनके पास बड़ी मात्रा में सैन्यहार्डवेयर था, इसलिए उन्होंने केवल चार दिनों में अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा कर लिया था।
खुफिया एजेंसियों की नाकामी – किसी भी युद्ध मे खुफिया एजेंसी का बहुत बड़ा योगदान होता है इसीलिए चीन के साथ युद्ध मेभारत की हार का भारतीय खुफिया एजेंसी की नाकामी भी बड़ा कारण थी।
प्रश्न 1- 1962 के युद्ध में चीन के कितने सैनिक मारे गए?
1962 के भारत-चीन युद्ध में, चीन के ताकती सैनिकों की संख्या लगभग 1,300 से 1,400 थी जबकि भारत के ताकती सैनिकों की संख्या लगभग 10,000 थी। इस युद्ध में चीन के ताकती सैनिकों के कुछ संख्या के बारे में विभिन्न स्रोतों में अलग-अलग जानकारियां हैं, लेकिन इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है।यह युद्ध चीन के ज्यादातर शहरों से दूर और अर्थव्यवस्था के पहलू पर ध्यान केंद्रित था, इसलिए उन्होंने इसमें ज्यादा से ज्यादा संख्या में अपने नागरिकों को हानि नहीं पहुंचाने की कोशिश की थी। चीन ने भारत के बारे में कुछ आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन भारत के अनुसार इस युद्ध में कुल 1,383 सैनिकों की मौत हुई थी।
प्रश्न 2- 1962 का भारत-चीन युद्ध कब शुरू हुआ था, उस वक्त भारत के रक्षा मंत्री कौन थे?
1962 का भारत-चीन युद्ध 20 अक्टूबर, 1962 को शुरू हुआ था। इस युद्ध में चीन की अनुमति से तिब्बत से भारत के बैठे हुए एक क्षेत्र को जबरदस्ती विवश कर लिया गया था। यह युद्ध लगभग एक महीने तक चला। भारत के रक्षा मंत्री उस समय श्री वी के कृष्ण मेनन थे।
प्रश्न 3- भारत का कौन हिस्सा 1962 के युद्ध के बाद से चीन के पास है?
अक्साई चिन1962 के युद्ध के बाद से चीन के पास भारत का अक्षाईणी परिवर्तन है, जिसमें अभी भी तनाव है। यह अक्षाईणी कश्मीर के उत्तरी हिस्से में स्थित है और उसके बारे में चीन दावा करता है कि यह उनके अधिकार में है। इस क्षेत्र में चीन ने विस्तार किया है और वह अभी भी भारत की अपनी भूमि के रूप में दावा करता है। इस क्षेत्र की विवादित सीमा को लेकर भारत और चीन के बीच सीमा विवाद है, जो अक्षरशः सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रश्न 4- 1962 में चीन ने भारत की कितनी जमीन पर कब्जा किया था?
1962 में चीन ने भारत की करीब 38,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा किया था। इसमें अक्साईचिना क्षेत्र, लद्दाख के उत्तरी भाग, हिमाचल प्रदेश के जूनागढ़, धौलादार और गैरी सेक्टर शामिल थे। चीनी सेना ने भारतीय सेना को बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ा था और भारत को अपनी ज़मीन का खोना पड़ा था। यह युद्ध भारत चीन सीमा विवाद का एक बड़ा परिणाम था और इसने दोनों देशों के रिश्तों पर गहरा प्रभाव डाला।
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